एक्टर और फिल्ममेकर आर. माधवन, जो इन दिनों ‘Dhurandhar’ की ज़बरदस्त सफलता का हिस्सा बने हुए हैं, हाल ही में अपने दिल की बात खुलकर साझा करते नज़र आए। फिल्म के रिलीज़ से पहले और पहले दिन ही कई ट्रेड एक्सपर्ट्स और क्रिटिक्स ने फिल्म पर सवाल उठाए, इसकी लंबाई और टिकट कीमतों को लेकर चर्चाएँ कीं, और कुछ ने तो इसे “डिज़ास्टर” जैसा शब्द इस्तेमाल करते हुए खारिज भी कर दिया।
लेकिन Madhavan का मानना है कि ऐसी प्रतिक्रिया कई बार वास्तविकता को नहीं दर्शाती—और कुछ आलोचक बिना फिल्म को समझे जल्दबाजी में निर्णय दे देते हैं।
Madhavan ने साफ कहा:
“मैं नोट कर लेता हूँ कि कौन लोग रिलीज़ से पहले या पहले दिन ही फिल्म को ‘एंड’ या ‘डिज़ास्टर’ कहते हैं।”
उनके अनुसार, ऐसे रिव्यू देने वाले क्रिटिक्स की विश्वसनीयता कम होती है, जबकि अच्छे और ईमानदार समीक्षक वही हैं जो या तो बहुत अनुभवी हों या बहुत नए, और वास्तव में फिल्म को देखने और समझने के बाद राय दें।
‘Dhurandhar’—शुरुआती शंका, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर धमाका
5 दिसंबर को रिलीज़ हुई ‘Dhurandhar’ ने शुरुआत में मिश्रित प्रतिक्रियाएँ जरूर देखीं, लेकिन कंटेंट इतना दमदार था कि फिल्म ने तीन दिनों के अंदर ही बॉक्स ऑफिस पर लहरें पैदा करनी शुरू कर दीं।
लोगों ने माना कि भले टिकट कीमतें ऊँची थीं और फिल्म लंबी थी, लेकिन कहानी और प्रस्तुति इतनी ताकतवर थी कि दर्शक लगातार थिएटर तक खिंचे चले आए।
मगर Madhavan पहले ही फिल्म की इस सफलता को लेकर आश्वस्त थे।
उन्होंने कहा कि “मैंने ये सब पहले भी देखा है।”
Rang De Basanti का अनुभव—शुरुआत में तिरस्कार, बाद में इतिहास
Madhavan ने इस इंटरव्यू में 2006 की अपनी आइकॉनिक फिल्म ‘Rang De Basanti’ का किस्सा सुनाते हुए बताया कि कैसे उस फिल्म के शुरुआती दिनों में भी लगभग वही हालत थी जो ‘Dhurandhar’ के लिए देखने को मिली।
उन्होंने बताया कि जब Rang De Basanti रिलीज़ होने वाली थी, कई डिस्ट्रीब्यूटर्स ने आखिरी समय पर फिल्म को छोड़ दिया।
पहला शो खत्म होने के बाद भी कुछ डिस्ट्रीब्यूटर्स ने कहा:
“बहुत लंबी है, हमारा तरह की फिल्म नहीं है, हम इसे आगे नहीं ले जा सकते।”
निर्देशक राकेश ओमप्रकाश मेहरा इतना निराश हुए कि टीवी के पास बैठकर सिर पकड़ लिया।
उन्होंने कहा था:
“मैं वापस गाँव चला जाऊँगा… मैं इससे बेहतर फिल्म बना ही नहीं सकता।”
वहीं कमरे में
आमिर खान
रॉनी स्क्रूवाला
और बाकी स्टारकास्ट
सब उसी सदमे को महसूस कर रहे थे।
माधवन ने कहा:
“मैं तो डर गया था… लगा कि हमारी बड़ी फिल्म खत्म हो गई।”
लेकिन फिर वही फिल्म…
नेशनल अवॉर्ड जीती
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर छा गई
गोल्डन ग्लोब्स और ऑस्कर में भारत की आधिकारिक प्रविष्टि बनी
और आज भी भारतीय सिनेमा की सबसे प्रभावशाली फिल्मों में गिनी जाती है
माधवन कहते हैं कि यह अनुभव उनके जीवन का निर्णायक मोड़ था—और इसने उन्हें सिखाया कि शुरुआती दिन कभी किसी फिल्म का असली भविष्य तय नहीं करते।
Dhurandhar के लिए Madhavan का भरोसा—“मैंने ये पहले देख रखा था”
इस अनुभव ने Madhavan को एक नज़र से सिखाया कि:
लोग शुरुआत में फिल्म को लेकर गलत सोच सकते हैं
कुछ क्रिटिक्स सतही कारण बताते हुए फिल्म को खारिज कर देते हैं
लेकिन असली गेम पब्लिक वर्ड-ऑफ-माउथ पर चलता है
‘Dhurandhar’ के लिए भी उन्होंने यही महसूस किया कि:
यह फिल्म समय लेगी
प्रतिक्रियाओं में उतार–चढ़ाव आएगा
लेकिन अंत में कंटेंट इतना मजबूत है कि फिल्म टिकेगी और बढ़ेगी
और बिल्कुल ऐसा ही हुआ।
Dhurandhar का बोल्ड कंटेंट—विवाद और चर्चा दोनों बढ़े
‘Dhurandhar’ पाकिस्तान की चालों, गुप्त ऑपरेशन्स और भारत के खिलाफ हो रही साजिशों को स्पष्ट और बेबाक तरीके से दिखाती है।
फिल्म:
ग्राफिक हिंसा
राजनीतिक पृष्ठभूमि
देशभक्ति की संवेदनाओं
और वास्तविक घटनाओं से प्रेरित तनाव
इन सबको बिना मुलायम किए दिखाती है।
माधवन कहते हैं कि ऐसी फिल्में शुरुआत में ही हर किसी के बस की नहीं होतीं।
लेकिन यही कहानियाँ लंबे समय तक लोगों के मन में रहती हैं।
क्रिटिक्स और जनता—दो अलग नज़रिए
माधवन का कहना है कि दर्शक कई बार फिल्म को अलग तरह से स्वीकार करते हैं, जबकि कुछ आलोचक फिल्म की असल क्षमता को समझने में चूक जाते हैं।
उन्होंने कहा:
“जब फिल्म बाद में जाकर हिट होती है, तो ऐसे आलोचकों की विश्वसनीयता खुद-ब-खुद कम हो जाती है।”
यही चीजें उन्होंने ‘Rang De Basanti’ में देखी थीं और अब ‘Dhurandhar’ में भी महसूस कीं।
निष्कर्ष—Madhavan की सीख: “फिल्म को समय दो, वो खुद अपना रास्ता बनाएगी”
‘Dhurandhar’ की सफलता सिर्फ बॉक्स ऑफिस की जीत नहीं, बल्कि Madhavan के लिए एक व्यक्तिगत संतोष का विषय भी है।
क्योंकि उन्होंने साबित किया कि:
जल्दबाजी में की गई आलोचनाएँ हमेशा सही नहीं होतीं
दर्शकों की पसंद समय के साथ बदल सकती है
और एक फिल्म का असली प्रभाव धीरे-धीरे सामने आता है
उनके शब्दों में:
“जब लोग फिल्म को पहले खारिज करते हैं और बाद में उसकी सफलता देखकर चौंक जाते हैं… वही पल तो हम कलाकारों के लिए सबसे बड़े इनाम होते हैं।”


