Mayasabha Season 1 Review: राजनीति, दोस्ती और सत्ता की तिकड़ी में उलझी एक दमदार कहानी

दोस्ती से दुश्मनी, सत्ता से संघर्ष — राजनीति के रंग हर फ्रेम में।

Dev
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Mayasabha: असली सियासी घटनाओं से प्रेरित पॉलिटिकल ड्रामा जो दोस्ती, महत्वाकांक्षा और सत्ता की लड़ाई को एक मंच पर लाता है।Prime Video / Production Team of Mayasabha

भारतीय राजनीति हमेशा से ही ड्रामा, रणनीति और सस्पेंस से भरी रही है। जब ऐसे पावर गेम को वेब सीरीज़ के पर्दे पर उतारा जाता है, तो नतीजा दिलचस्प हो सकता है। Prime Video पर आई Mayasabha Season 1 भी उसी कोशिश का हिस्सा है — जहां सत्ता, जाति और महत्वाकांक्षा दोस्ती को दुश्मनी में बदल देती है।

कहानी का प्लॉट
सीरीज़ की कहानी केंद्रित है दो आदर्शवादी नौजवान नेताओं पर — काकर्ला कृष्णमा नायडू (आधि पिनिसेट्टी) और एमएस रामिरेड्डी (चैतन्य राव)। शुरुआत में दोनों दोस्त हैं, जो राजनीति में बदलाव लाने का सपना देखते हैं। लेकिन जैसे-जैसे सत्ता, जातिगत समीकरण और निजी महत्वाकांक्षा बीच में आती है, उनकी राहें अलग हो जाती हैं और टकराव शुरू हो जाता है।

सीरीज़ में एक सबप्लॉट भी है, जिसमें एक आम आदमी अपने परिवार को गुटबाजी वाली हिंसा से बचाने की कोशिश करता है। यह हिस्सा कहानी में मानवीय भावनाओं की गहराई जोड़ता है, जो इसे सिर्फ सत्ता की लड़ाई से आगे ले जाता है।

असली घटनाओं से प्रेरणा

Mayasabha काल्पनिक है, लेकिन इसकी जड़ें असली राजनीति में हैं। कई किरदार और घटनाएं सीधे तौर पर भारत के बड़े नेताओं और सियासी मोड़ों से मेल खाती हैं:

कृष्णमा नायडू का किरदार कहीं-ना-कहीं एन. चंद्रबाबू नायडू से प्रेरित लगता है।

रामिरेड्डी के किरदार में वाई.एस. राजशेखर रेड्डी की झलक है — एक डॉक्टर जो राजनीति में कदम रखता है और समय के साथ बदलता है।

साई कुमार का किरदार आरसीआर, असल में एन.टी. रामाराव जैसा एक्टर-टर्न्ड-पॉलिटिशियन है, जिसका करिश्मा दर्शकों को खींचता है।

कहानी में इमरजेंसी और मास स्टेरिलाइजेशन जैसे अहम ऐतिहासिक संदर्भ भी दिए गए हैं।

एक्टिंग परफॉर्मेंस

आधि पिनिसेट्टी ने कृष्णमा नायडू को एक हकलाने वाले आदर्शवादी से एक चालाक और करिश्माई नेता में बदलते हुए बखूबी निभाया है।

चैतन्य राव रामिरेड्डी के रोल में शानदार हैं। एक नैतिक डॉक्टर से सियासत के खिलाड़ी बनने तक का सफर उन्होंने बहुत विश्वसनीय तरीके से दिखाया है।

दिव्या दत्ता इरावती बसु के रोल में पावरफुल लगती हैं, भले ही उनका ट्रैक उतार-चढ़ाव भरा हो।

नास्सर कम समय में भी गहरी छाप छोड़ते हैं।

साई कुमार का एनटीआर-प्रेरित आरसीआर वाला किरदार शो का हाईलाइट है — दमदार, करिश्माई और प्रभावी।

प्लस प्वाइंट्स

पॉलिटिकल कमेंट्री और लेयरिंग: सीरीज़ सिर्फ घटनाओं को नहीं दिखाती, बल्कि उनके सामाजिक और राजनीतिक असर को भी समझाती है।

रियलिस्टिक टच: किरदारों के सफर में बदलाव, पावर का असर, और आम लोगों पर राजनीति का प्रभाव — सबको गहराई से दिखाया गया है।

म्यूजिक और बैकग्राउंड स्कोर: कई ड्रामेटिक सीन में म्यूजिक कहानी को और असरदार बना देता है।

माइनस प्वाइंट्स
धीमी शुरुआत: पहले कुछ एपिसोड में लव ट्रैक और गाने की वजह से कहानी का पेस स्लो हो जाता है।

ग्राफिक सीन: कुछ हिंसक दृश्य बहुत ग्राफिक हैं, जो संवेदनशील दर्शकों को असहज कर सकते हैं।

अनावश्यक सॉन्ग सीक्वेंस: सियासी ड्रामे में यह कभी-कभी अनफिट लगते हैं।

डायरेक्शन और तकनीकी पहलू
डेव कट्टा और किरण जय कुमार का डायरेक्शन पॉलिटिकल ड्रामा के लिहाज से मजबूत है। वे कहानी को असलियत और ड्रामा के बीच बैलेंस करते हैं।

स्क्रीनप्ले में ऐतिहासिक घटनाओं को जोड़ने का तरीका अच्छा है, लेकिन पहले हिस्से में एडिटिंग और टाइट हो सकती थी। सिनेमैटोग्राफी राजनीति के ग्रैंड सेटअप और आम लोगों की जमीनी हकीकत — दोनों को अच्छे से कैप्चर करती है।

सीज़न 2 की ओर इशारा

पहला सीज़न ऐसे मोड़ पर खत्म होता है, जहां दांव और बड़े हो गए हैं। कृष्णमा नायडू और रामिरेड्डी की टकराहट अब और भी तीखी होने वाली है। यह क्लिफहैंगर दर्शकों को अगले सीज़न का इंतजार कराता है।

निष्कर्ष
Mayasabha Season 1 पॉलिटिकल ड्रामा पसंद करने वालों के लिए एक बढ़िया विकल्प है। इसमें राजनीति का असली रंग, दोस्ती की टूटन, सत्ता का खेल और सामाजिक आलोचना — सबकुछ एक साथ मिलता है।

अगर आपको असली घटनाओं से प्रेरित कहानियां, पावर स्ट्रगल और पॉलिटिकल माइंड गेम्स पसंद हैं, तो यह सीरीज़ जरूर देखी जा सकती है। बस तैयार रहिए, शुरुआत में थोड़ा धैर्य रखना पड़ेगा।

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