RBI पर उम्मीदें टिकीं: रुपए की रक्षा और त्योहारी निकासी से बढ़ी लिक्विडिटी की किल्लत

त्योहारी सीजन में नकदी की कमी से बढ़ा दबाव, RBI से बड़ी राहत की उम्मीदें।

Dev
6 Min Read
RBI के हस्तक्षेप की उम्मीदों के बीच बाजार में लिक्विडिटी पर संकट गहराया।RBI लिक्विडिटी संकट

मुंबई: भारतीय बैंकिंग सिस्टम में तरलता यानी liquidity एक महीने बाद फिर से नकारात्मक स्तर पर पहुंच गई है। यह स्थिति तब आई जब रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने रुपये को मज़बूत बनाए रखने के लिए डॉलर की बिक्री की और दूसरी ओर त्योहारी सीज़न में जनता द्वारा भारी नकदी निकासी हुई।

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि यह ट्रेंड जारी रहा, तो आने वाले हफ्तों में core liquidity (सरकारी नकदी संतुलन को हटाने के बाद की वास्तविक तरलता) Net Demand and Time Liabilities (NDTL) के 1% से नीचे जा सकती है — जिससे बैंकों की उधारी क्षमता प्रभावित होगी और शॉर्ट-टर्म ब्याज दरें बढ़ सकती हैं।

क्या है मौजूदा स्थिति?

23 अक्टूबर तक बैंकिंग सिस्टम में कुल लिक्विडिटी घाटा ₹2,645 करोड़ तक पहुंच गया है।
यह पहली बार है जब पिछले एक महीने में लिक्विडिटी ने नकारात्मक रुख दिखाया है।

RBI द्वारा इस वर्ष की शुरुआत में Cash Reserve Ratio (CRR) में कटौती करके दो किश्तों में कुल ₹62,500 करोड़ की राहत दी गई थी। लेकिन डॉलर बिक्री, सरकारी उधारी, और नकद निकासी ने इस राहत के लाभ को लगभग समाप्त कर दिया है।

मार्केट विशेषज्ञों का कहना है कि RBI के पास फिलहाल दो रास्ते हैं –

  1. OMO (Open Market Operations) के तहत सरकारी बॉन्ड की खरीद कर नकदी प्रवाह बढ़ाना, या

  2. Forex buy/sell swaps के माध्यम से विदेशी मुद्रा लेनदेन द्वारा सिस्टम में रुपये डालना।

रुपए की रक्षा से कैसे घटा लिक्विडिटी स्तर

डॉलर के मुकाबले रुपया हाल के हफ्तों में दबाव में रहा है। रुपये की गिरावट को रोकने के लिए RBI ने विदेशी मुद्रा बाजार में डॉलर बेचकर हस्तक्षेप किया।
जब RBI डॉलर बेचता है, तो वह बाजार से रुपये खींच लेता है — यही वजह है कि सिस्टम में नकदी की कमी बढ़ जाती है।

हालांकि इस कदम ने रुपये को स्थिर बनाए रखा है, लेकिन इसका सीधा असर बैंकों की नकदी उपलब्धता पर पड़ा है।
इससे call money rate (बैंकों के बीच एक-दिवसीय उधार दर) और short-term yields में भी वृद्धि देखने को मिली है।

त्योहारी सीजन और नकदी निकासी का दबाव

दूसरा बड़ा कारण है — त्योहारी सीजन।
दशहरा और दीवाली जैसे त्योहारों में आम जनता और व्यापारियों द्वारा नकदी की मांग बढ़ जाती है।

मार्केट एनालिस्ट्स का कहना है कि “हर साल त्योहारी महीनों में ATM से नकदी निकासी 25–30% तक बढ़ जाती है। इस बार त्योहारों के साथ सरकारी उधारी और रुपये की रक्षा की कोशिशों ने मिलकर सिस्टम से लगभग ₹1 लाख करोड़ तक की तरलता सोख ली है।”

इसका असर NBFCs (गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों), मिड-साइज बैंकों और MSME सेक्टर की लोन डिमांड पर भी पड़ रहा है।

RBI के संभावित कदम: राहत कब मिलेगी?

बाजार विशेषज्ञों का अनुमान है कि RBI जल्द ही OMO bond purchase के माध्यम से नकदी डाल सकता है।
OMO की प्रक्रिया के तहत, केंद्रीय बैंक सरकारी बॉन्ड खरीदता है और बदले में बैंकों को नकद राशि प्रदान करता है।

दूसरा विकल्प है forex swap, जिसमें RBI डॉलर खरीदता है और रुपये छोड़ता है, जिससे सिस्टम में liquidity बढ़ती है।
अगर अगले दो हफ्तों में ऐसी कार्रवाई होती है, तो यह अल्पकालिक राहत दे सकती है।

आगे का परिदृश्य: क्या बैंक लोन महंगे होंगे?

अगर liquidity deficit बरकरार रहा, तो बैंकों की उधारी लागत बढ़ेगी।
इसका मतलब है कि आने वाले महीनों में EMI और short-term corporate loans महंगे हो सकते हैं।

रिलायंस सिक्योरिटीज के एक विश्लेषक के मुताबिक, “अगर कोर लिक्विडिटी दिसंबर तक -1% से नीचे जाती है, तो यह मनी मार्केट यील्ड्स को ऊपर धकेल सकती है और छोटे बैंकों पर मार्जिन प्रेशर बढ़ेगा।”

वैश्विक संदर्भ में RBI की भूमिका

वैश्विक स्तर पर डॉलर इंडेक्स 106 के ऊपर बना हुआ है और अमेरिकी ट्रेज़री यील्ड्स 5% के करीब हैं।
ऐसे में उभरते बाजारों पर पूंजी बहिर्वाह का दबाव बना हुआ है।

RBI को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है —

  • एक ओर रुपये की स्थिरता बनाए रखना,

  • दूसरी ओर घरेलू तरलता को संतुलित रखना।

यह संतुलन आसान नहीं है, खासकर जब त्योहारी महीनों में नकदी प्रवाह पर स्वाभाविक दबाव होता है।

निष्कर्ष: राहत की उम्मीद RBI से

त्योहारी नकद निकासी, डॉलर बिक्री और सरकारी उधारी के चलते भारत की बैंकिंग प्रणाली में लिक्विडिटी संकट गहरा गया है।
बाजार को उम्मीद है कि RBI जल्द ही OMO या Forex Swaps के ज़रिए राहत देगा।

निकट भविष्य में, केंद्रीय बैंक के कदम ही तय करेंगे कि बैंकों के लिए धन की उपलब्धता और ब्याज दरों की दिशा कैसी रहेगी।
अर्थव्यवस्था के सुचारू संचालन के लिए RBI की नीति-निर्माण क्षमता अब पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है।

Share This Article
Leave a Comment