सलाकार रिव्यू: अजीत डोभाल को समर्पित ये जासूसी सीरीज़ क्यों बनी मिस्ड चांस?

जासूसी थ्रिलर की रफ्तार है तेज, लेकिन दिल छूने वाली गहराई कहीं खो गई है।

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सलाकार: अजीत डोभाल के कारनामों से प्रेरित जासूसी कहानी, जो बन सकती थी भारत की 'Argo', लेकिन रह गई अधूरी।JioHotstar

सलाकार रिव्यू: अजीत डोभाल को समर्पित जासूसी कहानी, जो उम्मीदों पर खरी क्यों नहीं उतरी

अगर आप भारतीय जासूसी कहानियों के शौकीन हैं, तो “सलाकार” का नाम सुनकर ही दिल में थोड़ी हलचल जरूर हुई होगी। अजीत डोभाल जैसे दिग्गज स्पाई मास्टर के कामों को श्रद्धांजलि देने वाली सीरीज़… सुनने में तो बहुत ही दिलचस्प लगता है। लेकिन JioHotstar पर रिलीज़ हुई सलाकार आपको उतना मज़ा देती है या नहीं, यही इस रिव्यू में हम जानने वाले हैं।

कहानी का सेटअप

“सलाकार” की कहानी दो टाइमलाइनों में चलती है।

साल 2025 में, RAW एजेंट मरियम उर्फ सृष्टि (मौनी रॉय) पाकिस्तानी कर्नल अशफाकुल्लाह (सूर्या शर्मा) के परमाणु बम बनाने के प्लान को नाकाम करने की कोशिश कर रही है। उसके साथ है नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर (पुरनेंदु शर्मा), जो खुद उस कर्नल से पुराने हिसाब-किताब चुकाने के मिशन पर है।

फिर फ्लैशबैक 1978 में, वही NSA अपने यंग एजेंट वाले दौर में (नवीन कस्तूरिया) पाकिस्तान में मिशन पर है, जहां उसका काम है जनरल जिया (मुकेश ऋषि) के परमाणु रिएक्टर बनाने के इरादों को नाकाम करना।

कहानी का प्लॉट सुनने में भले ही आपको “मिशन मजनू”, “रॉकेट बॉयज़” या आने वाली “सारे जहां से अच्छा” जैसी फिल्मों की याद दिला दे, लेकिन असली फर्क आना चाहिए था इसके ट्रीटमेंट में। अफसोस, यहीं पर सीरीज़ लड़खड़ा जाती है।

तेज रफ्तार, लेकिन बिना गहराई के
“सलाकार” का सबसे बड़ा प्लस पॉइंट इसका छोटा रनटाइम है। 5 एपिसोड, हर एक लगभग 30 मिनट का — यानी कुल 2.5 घंटे। आजकल के OTT शो में 6–8 घंटे की लंबी खिंचाई के मुकाबले ये राहत देता है। लेकिन, छोटी होने के बावजूद यह आपको कसकर पकड़ नहीं पाती।

कहानी तेज़ी से आगे बढ़ती है, एक्शन लगातार है, और यही आपको थोड़ा-बहुत बांधकर रखता है। लेकिन किरदारों में जान डालने, उनकी बैकस्टोरी और इमोशनल कनेक्शन बनाने का जो समय होता है, उसे सीरीज़ ने बिल्कुल नजरअंदाज कर दिया। नतीजा ये कि आप कहानी के साथ दिल से जुड़ ही नहीं पाते।

डिटेल्स में ढेर सारी गलतियां
OTT के दौर में दर्शक डिटेल्स को बहुत गंभीरता से देखते हैं। छोटे-छोटे फैक्ट भी मायने रखते हैं। लेकिन “सलाकार” यहां बुरी तरह फेल होती है।

कर्नल जनरल के लिए तय गाड़ियों में घूमते हैं

हाई कमीशन को बार-बार एम्बेसी कहा जाता है (जो कूटनीतिक रूप से गलत है)

गुप्त मिशन खुलेआम चल रहे हैं

ये छोटी गलतियां नहीं हैं, खासकर जब आप ‘सच्ची घटना से प्रेरित’ कहानी दिखाने का दावा कर रहे हों।

टोन में कन्फ्यूजन
“सलाकार” कभी “Argo” जैसी गंभीर और रियलिस्टिक फिल्म बनने की कोशिश करती है, तो कभी “Kingsman” जैसी हल्की-फुल्की, ओवर-द-टॉप स्टाइल में चली जाती है। एक जासूस जो दुश्मन की नजरों से बचना चाहता है, वह नकली दांत और मजाकिया एक्सेंट का इस्तेमाल करता है — ये तो बुनियादी स्पाई लॉजिक के ही खिलाफ है।

अगर इसे जानबूझकर हल्की-फुल्की पैरोडी के रूप में बनाया जाता तो शायद मज़ा आ सकता था। लेकिन यह न पूरी तरह सीरियस है, न पूरी तरह सेल्फ-अवेयर।

एक्टिंग परफॉर्मेंस

नवीन कस्तूरिया (यंग NSA) शो की कुछ अच्छी बातों में से एक हैं। उनका एक्शन अवतार नया और भरोसेमंद लगता है।

मौनी रॉय को बेहद कम स्क्रीन टाइम और कमजोर स्क्रिप्ट दी गई है। एक काबिल एजेंट का रोल होते हुए भी उन्हें ‘डैम्सल इन डिस्टरेस’ में बदल देना अफसोसजनक है।

मुकेश ऋषि इस शो की सरप्राइज पैकेज हैं। जनरल जिया के रोल में उनका ओवर-द-टॉप अंदाज भी स्क्रीन पर असर डालता है और दुश्मन की धमकी को असली महसूस कराता है।

सूर्या शर्मा और अश्वथ भट्ट जैसे नैचुरल एक्टर्स को भी ओवरएक्टिंग के मोड में धकेलना डायरेक्शन की गलती है।

अजीत डोभाल को श्रद्धांजलि… लेकिन आधी-अधूरी
इस सीरीज़ का मकसद अजीत डोभाल जैसे महान स्पाई को सम्मान देना था। किरदार का लुक, बैकस्टोरी, यहां तक कि नाम भी उनसे प्रेरित हैं। लेकिन श्रद्धांजलि तभी असरदार बनती है, जब कहानी, रिसर्च और प्रेजेंटेशन भी उसी स्तर का हो। वरना, नतीजा उल्टा भी हो सकता है — और “सलाकार” के साथ यही हुआ है।

निष्कर्ष
“सलाकार” तेज रफ्तार, छोटे रनटाइम और कुछ अच्छे परफॉर्मेंस के कारण एक बार देखी जा सकती है, लेकिन इसे देखकर आपको महसूस होगा कि इसमें भारत का अपना “Argo” बनने की क्षमता थी — बस, क्रिएटिव और टेक्निकल डिटेलिंग में मेहनत की कमी रह गई।

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