Sebi का बड़ा कदम – भारतीय निवेशकों को मिलेगा FPIs में ज्यादा मौका, आएं जानें क्या है पूरा प्लान

अब भारतीय निवेशक भी अंतरराष्ट्रीय निवेश में बढ़ा पाएंगे कदम!

Dev
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SEBI ने पेश किया नया प्रस्ताव – भारतीय निवेशकों को FPIs में मिलेगा बड़ा मौकाSEBI

SEBI का नया प्रस्ताव – भारतीयों के लिए अंतरराष्ट्रीय निवेश के दरवाज़े खुलेंगे

नई दिल्ली, 11 अगस्त – भारतीय बाजार नियामक SEBI ने एक अहम कदम उठाते हुए यह प्रस्ताव दिया है कि रेज़िडेंट इंडियन निवेशकों को Foreign Portfolio Investors (FPIs) में अधिक भागीदारी का मौका दिया जाए।

इस प्रस्ताव के तहत भारतीय नॉन-इंडिविजुअल्स, म्यूचुअल फंड्स और Alternative Investment Funds (AIFs) की अंतरराष्ट्रीय निवेश संरचनाओं में भूमिका बढ़ाई जाएगी।

SEBI के इस कदम का मकसद है – भारतीय निवेशकों को ग्लोबल मार्केट में सीधा एक्सपोज़र देना और घरेलू पूंजी को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत बनाना।

IFSC आधारित रिटेल स्कीम्स को बड़ा फायदा

SEBI ने अपने कंसल्टेशन पेपर में कहा है –

“प्रस्ताव है कि भारत में स्थित International Financial Services Centres (IFSCs) में मौजूद रिटेल स्कीम्स, जिनके स्पॉन्सर या मैनेजर भारतीय नॉन-इंडिविजुअल्स हों, उन्हें FPIs के रूप में रजिस्टर करने की अनुमति दी जाए।”

इसका मतलब है कि अब IFSC रिटेल स्कीम्स जिनका संचालन भारतीय कंपनियां करती हैं, वे सीधे Foreign Portfolio Investor के रूप में निवेश कर सकेंगी।

नया टर्म – Fund Management Entity (FME)

SEBI ने सुझाव दिया है कि अभी तक IFSC-आधारित FPIs के लिए इस्तेमाल होने वाला “Sponsor or Manager” शब्द बदलकर “Fund Management Entity (FME) या उसका एसोसिएट” किया जाए।

इस बदलाव से टर्मिनोलॉजी ज्यादा क्लियर होगी और AIFs व रिटेल स्कीम्स में भारतीय नॉन-इंडिविजुअल्स को 10% तक फंड के कुल कॉर्पस या एसेट अंडर मैनेजमेंट में योगदान की अनुमति मिलेगी।

म्यूचुअल फंड्स को भी शामिल करने का प्रस्ताव

SEBI के प्रस्ताव के अनुसार, ओवरसीज़ म्यूचुअल फंड्स/यूनिट ट्रस्ट्स जो FPIs के रूप में रजिस्टर होते हैं, वे भारतीय म्यूचुअल फंड्स को अपने कॉन्स्टिटुएंट्स के रूप में शामिल कर सकते हैं।

यह कदम भारतीय म्यूचुअल फंड्स को सीधे विदेशी पोर्टफोलियो निवेश संरचना में भागीदारी का रास्ता खोलेगा, जिससे निवेशकों को विविधता और रिटर्न के नए अवसर मिलेंगे।

मौजूदा नियम क्या कहते हैं?

वर्तमान में, FPI Regulations के तहत –

NRI (Non-Resident Indians), OCI (Overseas Citizens of India) और रेज़िडेंट इंडियंस सीधे FPIs के रूप में रजिस्टर नहीं हो सकते।

हालांकि, वे FPIs के कॉन्स्टिटुएंट्स बन सकते हैं, बशर्ते उनकी कॉन्ट्रिब्यूशन लिमिट और कंट्रोल पर कुछ शर्तें लागू हों।

भारतीय नॉन-इंडिविजुअल्स भी FPIs के कॉन्स्टिटुएंट हो सकते हैं, लेकिन उनकी निवेश सीमा और शर्तें तय हैं।

SEBI का नया प्रस्ताव इन नियमों को लचीला बनाने की दिशा में है, ताकि भारतीय निवेशकों की मौजूदगी वैश्विक निवेश प्लेटफॉर्म पर और मजबूत हो।

पब्लिक से सुझाव भी मांगे गए

SEBI ने इस कंसल्टेशन पेपर पर 29 अगस्त तक जनता से कमेंट्स और सुझाव मांगे हैं।
यानी, अगर निवेशक, कंपनियां या इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स इसमें कोई बदलाव या सुझाव देना चाहते हैं, तो वे SEBI को भेज सकते हैं।

क्यों ज़रूरी है ये बदलाव?

भारतीय निवेशकों का ग्लोबल एक्सपोज़र बढ़ाना – ताकि निवेशक सिर्फ घरेलू मार्केट पर निर्भर न रहें।

भारत की पूंजी को विदेशी मार्केट में लाना – जिससे भारतीय कंपनियों का प्रभाव बढ़े।

FPIs में विविधता लाना – निवेशकों का पोर्टफोलियो ज्यादा संतुलित और सुरक्षित बनाना।

IFSC को प्रमोट करना – भारत को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय सेवाओं का हब बनाना।

निवेशकों पर संभावित असर

अगर ये प्रस्ताव लागू हो जाता है, तो –

भारतीय नॉन-इंडिविजुअल्स को ग्लोबल मार्केट में डायरेक्ट एंट्री मिल जाएगी।

म्यूचुअल फंड निवेशकों को अंतरराष्ट्रीय डाइवर्सिफिकेशन के ज्यादा मौके मिलेंगे।

AIFs और रिटेल स्कीम्स की ग्लोबल रीच बढ़ जाएगी।

इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स की राय

मार्केट एक्सपर्ट्स का मानना है कि यह कदम भारत को अंतरराष्ट्रीय निवेश के मानचित्र पर और मजबूती से स्थापित करेगा। साथ ही, इससे कैपिटल फ्लो और मार्केट डेप्थ में भी सुधार होगा।

निष्कर्ष
SEBI का यह कदम भारतीय निवेशकों के लिए एक गेम-चेंजर साबित हो सकता है। खासकर उन संस्थागत निवेशकों और म्यूचुअल फंड्स के लिए जो अब तक विदेशी पोर्टफोलियो निवेश में सीधे भाग नहीं ले पा रहे थे।

अगर यह प्रस्ताव लागू होता है, तो भारत के निवेशक ग्लोबल इन्वेस्टमेंट में एक बड़ी छलांग लगाने को तैयार होंगे – और शायद यही भारत को वैश्विक वित्तीय शक्ति बनाने की दिशा में एक और मजबूत कदम होगा।

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