ZEE5 पर आई नई हिंदी फिल्म Tehran एक अलग किस्म का थ्रिलर है। निर्देशक अरुण गोपालन ने इसे बनाया है, और इसमें मुख्य किरदार निभा रहे हैं जॉन अब्राहम, जो इस बार दिल्ली पुलिस के एक अफसर बनकर ईरान-इजराइल कॉन्फ्लिक्ट में कूद पड़ते हैं।
ये फिल्म सिर्फ एक पुलिस अफसर की कहानी नहीं, बल्कि उस कूटनीतिक खतरनाक खेल को दिखाती है, जहां जासूसी एजेंसियां, आतंकवाद और देशों के बीच की राजनीति सब आपस में टकराते हैं।
कहानी – राजीव की जंग
फिल्म की शुरुआत होती है 2012 के वास्तविक हमलों से, जब ईरानी एजेंट्स ने इजराइली डिप्लोमैट्स को निशाना बनाया था। दिल्ली में हुए एक ब्लास्ट में मासूम लोगों की जान जाती है। उनमें एक फूल बेचने वाली बच्ची की मौत राजीव (जॉन अब्राहम) के दिल पर गहरी चोट करती है।
राजीव का फैसला साफ है – “जब तक उनके हाथ काट नहीं देंगे, भारत को कोई सीरियसली नहीं लेगा।”
अपने सीनियर्स द्वारा “insane” और “loose cannon” कहे जाने के बावजूद, राजीव अपने मिशन पर अडिग है। उसके साथ है RAW की ऑफिसर शैलजा (नीरू बाजवा), साथी दिव्या (मानुषी छिल्लर) और विजय (डिंकर शर्मा)। लेकिन उनकी ये खतरनाक कवायद सरकार की मंजूरी के बिना है।
कूटनीति बनाम एक्शन
राजीव की इस हरकत से भारत-ईरान के बीच का गैस डील खतरे में पड़ जाता है। सरकारें भड़की हुई हैं। RAW और Special Cell दोनों को डर है कि ये मिशन भारत के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है।
लेकिन वहीं दूसरी ओर, Mossad राजीव को एक ऐसे आदमी के रूप में देखती है, जो नियम तोड़कर भी कामयाब हो सकता है। और यहीं से कहानी एक नया मोड़ लेती है।
किरदार और अभिनय
जॉन अब्राहम (राजीव) – शांत लेकिन खतरनाक पुलिस अफसर। उनका गुस्सा और जुनून, हमें उनकी पुरानी फिल्मों Batla House और The Diplomat की याद दिलाता है।
नीरू बाजवा (शैलजा) – एक सशक्त RAW ऑफिसर, जो कहानी को और मजबूती देती हैं।
मानुषी छिल्लर (दिव्या) – एक नए अंदाज में नज़र आती हैं और टीम का अहम हिस्सा बनती हैं।
हादी खानजांपुर (अफसर) – ईरानी मिलिटेंट का रोल निभाते हुए, उनके किरदार का Palestinian cause से जुड़ाव फिल्म को और संवेदनशील बनाता है।
अल्ली खान और कौशिक मुखर्जी – सरकारी अधिकारियों के रोल में बेहद दमदार।
निर्देशन और स्क्रिप्ट
कहानी बिंदनी कारिया ने लिखी है, और स्क्रीनप्ले कारिया व रितेश शाह ने तैयार किया है।
फिल्म की खासियत यह है कि इसमें Farsi डायलॉग्स, gritty sequences और international सेटिंग्स हैं, जो इसे असली जासूसी फिल्मों जैसा लुक देती है। लेकिन कहीं-कहीं फिल्म geopolitics में उलझ जाती है और अपने narrative को उतना strongly justify नहीं कर पाती।
वास्तविकता और कल्पना का टकराव
Tehran खुद को वास्तविक घटनाओं से प्रेरित बताती है। लेकिन असलियत और फिल्मी ड्रामा के बीच फर्क साफ नज़र आता है।
जहां एक तरफ फिल्म ईरान-इजराइल के असली तनाव को दिखाने की कोशिश करती है, वहीं दूसरी तरफ राजीव का “Rambo-style” revenge mission इसे typical Bollywood cop-thriller बना देता है।
आज के दौर में, जब गाज़ा और मिडिल ईस्ट की हालात बेहद गंभीर हैं, फिल्म का यह एक्शन-ड्रिवन एप्रोच कई दर्शकों को disconnected कर सकता है।
मजबूत पहलू
जॉन अब्राहम का intense अभिनय
gripping pace और international backdrops
raw action sequences और Mossad angle
कमजोरियां
geopolitics को oversimplify करना
कुछ जगह narrative का टूटना
diplomacy बनाम action में संतुलन की कमी
निष्कर्ष
Tehran एक दिलचस्प जासूसी थ्रिलर है, जो भारत के नजरिए से ईरान-इजराइल टकराव को दिखाती है। जॉन अब्राहम का अभिनय और gritty tone फिल्म को देखने लायक बनाते हैं। लेकिन अगर आप असली geopolitics की गहराई चाहते हैं, तो शायद फिल्म आपको पूरी तरह satisfy न करे।
फिर भी, एक बॉलीवुड थ्रिलर के तौर पर, यह ZEE5 पर दर्शकों को जरूर बांधे रखेगी।