रुपया रिकॉर्ड लो पर: क्या दिसंबर खत्म होने से पहले 90 रुपये प्रति डॉलर हकीकत बन जाएगा?

कमज़ोर होता रुपया, बढ़ती चिंताएँ — क्या दिसंबर में डॉलर 90 के पार?

Dev
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भारतीय रुपया रिकॉर्ड लो स्तर पर, निवेशकों और बाज़ार के लिए बढ़ती अनिश्चितता।Indian Rupee Fall

भारत की मुद्रा बाज़ार में सोमवार, 1 दिसंबर को बड़ा झटका देखने को मिला, जब भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 89.83 के स्तर तक गिर गया, जो इसका अब तक का सबसे निचला रिकॉर्ड है। इससे पहले रुपया ने 89.49 का लो नवंबर के मध्य में छुआ था, लेकिन इस बार गिरावट का दबाव और भी अधिक रहा। लगातार विदेशी पोर्टफोलियो आउटफ्लो, आयातकों की भारी डॉलर मांग और इंडिया–यूएस ट्रेड डील को लेकर अनिश्चितता ने रुपये को पटरी से उतार दिया है।

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जहां भारत की आर्थिक वृद्धि 8.2% के मजबूत स्तर पर बनी हुई है, वहीं डॉलर की लगातार मजबूती और घरेलू बाज़ार की चिंताओं ने रुपये को बचाव करने का कोई मौका नहीं दिया। इस ऐतिहासिक गिरावट ने स्टॉक मार्केट में भी बेचैनी बढ़ा दी, जिससे सेंसेक्स और निफ्टी दोनों दिन भर दबाव में रहे और रिकॉर्ड हाई से नीचे लुढ़क गए।

क्यों टूट रहा है रुपया?

रुपये की गिरावट का कारण सिर्फ एक नहीं, बल्कि कई फैक्टर इसके लिए ज़िम्मेदार हैं:

1. भारत–अमेरिका ट्रेड डील पर अनिश्चितता

काफी समय से चर्चित ट्रेड डील आगे नहीं बढ़ पा रही है।

  • टैरिफ से जुड़े तनाव बढ़े हैं।

  • निर्यातकों में अनिश्चितता बढ़ रही है।

  • विदेशी फंड्स सावधानी बरत रहे हैं।

इससे विदेशी निवेशक सुरक्षित एसेट्स की ओर झुक रहे हैं और डॉलर की मांग और तेज़ हो रही है।

2. विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) का आउटफ्लो

नवंबर और दिसंबर में विदेशी निवेशक लगातार भारतीय बाज़ार से पैसा निकाल रहे हैं।
इसके दो प्रमुख कारण हैं:

  • डॉलर के मुकाबले EM currencies (उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएँ) कमजोर हो रही हैं।

  • अमेरिकी बॉन्ड यील्ड लगातार आकर्षक बनी हुई है।

डॉलर की बढ़ती मांग से रुपया स्वाभाविक रूप से कमजोर होता है।

3. आयातकों की लगातार डॉलर खरीदारी

तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव और अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक भुगतान के चलते भारतीय आयातकों को भारी मात्रा में डॉलर खरीदने पड़ रहे हैं।
इससे डॉलर पर खरीदारी का दबाव और बढ़ गया है।

4. बैलेंस ऑफ पेमेंट (BoP) में दबाव

भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में

  • चालू खाता घाटा बढ़ा है

  • सेवा क्षेत्र से मिलने वाला सपोर्ट कम हुआ है

जब बोपी कमजोर होता है, तो विदेशी मुद्रा भंडार पर तनाव बढ़ता है—और रुपया गिरता है।

5. घरेलू बाज़ार की भावना कमजोर

मुद्रा की गिरावट ने निवेशकों की धारणा पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।
स्टॉक बाज़ार भी इस भावनात्मक गिरावट से अछूता नहीं रहा।

विशेषज्ञ क्या कहते हैं?

Anindya Banerjee (Kotak Securities)

उन्होंने कहा कि:

  • भारत की रियल GDP मजबूत है

  • लेकिन नॉमिनल GDP कई सालों के निचले स्तर पर

  • इसका कारण अत्यंत कम मुद्रास्फीति

कम महंगाई लंबे समय में रुपये के लिए अच्छी है, लेकिन अल्पकाल में यह रुपये की आकर्षकता और यील्ड डिफरेंशियल को कम कर देता है, जिससे विदेशी निवेशक वापस खिंच जाते हैं।

क्या दिसंबर के अंत तक रुपया 90 को छू सकता है?

इस सवाल का सीधा जवाब यह है कि:
हाँ, संभावना काफी अधिक है।

इसके प्रमुख कारण:

1. डॉलर इंडेक्स अब भी मजबूत

डॉलर इंडेक्स 103–105 के दायरे में मजबूत बना हुआ है।

2. FPI सेलिंग रुकने का संकेत नहीं

विदेशी निवेशकों की सेलिंग अभी भी जारी है।

3. RBI का सीमित हस्तक्षेप

RBI जरूरत पड़ने पर बाज़ार में स्थिरता लाता है,
लेकिन

  • लगातार हस्तक्षेप विदेशी मुद्रा भंडार को कम कर सकता है

  • इसलिए RBI आमतौर पर सिर्फ उतना ही हस्तक्षेप करता है, जितना आवश्यक हो

4. आयात भुगतान का पीक सीजन

दिसंबर–जनवरी में व्यापारिक भुगतान बढ़ जाते हैं, जिससे डॉलर की मांग बढ़ती है।

डॉलर–रुपया का संभावित रेंज (दिसंबर 2025)

तारीखसंभावित रेंज
1–10 दिसंबर89.50 – 90.10
10–20 दिसंबर89.80 – 90.50
20–31 दिसंबरयदि FPI आउटफ्लो बढ़ा: 90.80 तक

90 स्तर टूटना अब सिर्फ समय की बात लगता है।

इसका असर आम भारतीयों पर

1. विदेश यात्रा और पढ़ाई महंगी

डॉलर के महंगे होने से

  • टिकट

  • होटल

  • ट्यूशन फीस
    सब बढ़ता है।

2. आयातित सामान महंगा

मोबाइल, लैपटॉप, हॉस्पिटल इक्विपमेंट, कार पार्ट्स आदि महंगे होंगे।

3. ईंधन पर असर

तेल कंपनियों की लागत बढ़ती है, जिससे भविष्य में पेट्रोल–डीज़ल की कीमतें फिर बढ़ सकती हैं।

4. शेयर मार्केट में उतार-चढ़ाव बढ़ेगा

रुपये की कमजोरी से

  • आईटी और फार्मा को फायदा

  • बैंकिंग, FMCG और आयात निर्भर सेक्टर को नुकसान

🇮🇳 क्या RBI और सरकार इसे रोक पाएंगे?

RBI की रणनीति

  • जरूरी होने पर डॉलर बेचकर बाज़ार को स्थिर करेगा

  • लेकिन रुपये को किसी खास स्तर पर बांधे रखने की नीति RBI की नहीं

सरकार की रणनीति

  • ट्रेड बैलेंस सुधारा जाए

  • निर्यात को बढ़ावा दिया जाए

  • विदेश निवेश आकर्षित किया जाए

लेकिन ये उपाय तुरंत असर नहीं दिखाते।

निष्कर्ष: 90 रुपये प्रति डॉलर—अब लगभग तय?

भारतीय रुपया अब लगातार दबाव में है और 90 का स्तर अब मनोवैज्ञानिक नहीं बल्कि व्यावहारिक वास्तविकता बन चुका है।
जब तक

  • FPI आउटफ्लो कम नहीं होता

  • डॉलर इंडेक्स नरम नहीं पड़ता

  • इंडिया–यूएस ट्रेड डील आगे नहीं बढ़ती
    तब तक रुपये में मजबूत रिकवरी देखना मुश्किल है।

संभावना यही है कि दिसंबर खत्म होने से पहले रुपया 90 के स्तर को छू सकता है, और उससे थोड़ा ऊपर भी जा सकता है।

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