भारत की मुद्रा बाज़ार में सोमवार, 1 दिसंबर को बड़ा झटका देखने को मिला, जब भारतीय रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 89.83 के स्तर तक गिर गया, जो इसका अब तक का सबसे निचला रिकॉर्ड है। इससे पहले रुपया ने 89.49 का लो नवंबर के मध्य में छुआ था, लेकिन इस बार गिरावट का दबाव और भी अधिक रहा। लगातार विदेशी पोर्टफोलियो आउटफ्लो, आयातकों की भारी डॉलर मांग और इंडिया–यूएस ट्रेड डील को लेकर अनिश्चितता ने रुपये को पटरी से उतार दिया है।
- क्यों टूट रहा है रुपया?
- 1. भारत–अमेरिका ट्रेड डील पर अनिश्चितता
- 2. विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) का आउटफ्लो
- 3. आयातकों की लगातार डॉलर खरीदारी
- 4. बैलेंस ऑफ पेमेंट (BoP) में दबाव
- 5. घरेलू बाज़ार की भावना कमजोर
- विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
- क्या दिसंबर के अंत तक रुपया 90 को छू सकता है?
- 1. डॉलर इंडेक्स अब भी मजबूत
- 2. FPI सेलिंग रुकने का संकेत नहीं
- 3. RBI का सीमित हस्तक्षेप
- 4. आयात भुगतान का पीक सीजन
- डॉलर–रुपया का संभावित रेंज (दिसंबर 2025)
- इसका असर आम भारतीयों पर
- 1. विदेश यात्रा और पढ़ाई महंगी
- 2. आयातित सामान महंगा
- 3. ईंधन पर असर
- 4. शेयर मार्केट में उतार-चढ़ाव बढ़ेगा
- क्या RBI और सरकार इसे रोक पाएंगे?
- निष्कर्ष: 90 रुपये प्रति डॉलर—अब लगभग तय?
जहां भारत की आर्थिक वृद्धि 8.2% के मजबूत स्तर पर बनी हुई है, वहीं डॉलर की लगातार मजबूती और घरेलू बाज़ार की चिंताओं ने रुपये को बचाव करने का कोई मौका नहीं दिया। इस ऐतिहासिक गिरावट ने स्टॉक मार्केट में भी बेचैनी बढ़ा दी, जिससे सेंसेक्स और निफ्टी दोनों दिन भर दबाव में रहे और रिकॉर्ड हाई से नीचे लुढ़क गए।
क्यों टूट रहा है रुपया?
रुपये की गिरावट का कारण सिर्फ एक नहीं, बल्कि कई फैक्टर इसके लिए ज़िम्मेदार हैं:
1. भारत–अमेरिका ट्रेड डील पर अनिश्चितता
काफी समय से चर्चित ट्रेड डील आगे नहीं बढ़ पा रही है।
टैरिफ से जुड़े तनाव बढ़े हैं।
निर्यातकों में अनिश्चितता बढ़ रही है।
विदेशी फंड्स सावधानी बरत रहे हैं।
इससे विदेशी निवेशक सुरक्षित एसेट्स की ओर झुक रहे हैं और डॉलर की मांग और तेज़ हो रही है।
2. विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) का आउटफ्लो
नवंबर और दिसंबर में विदेशी निवेशक लगातार भारतीय बाज़ार से पैसा निकाल रहे हैं।
इसके दो प्रमुख कारण हैं:
डॉलर के मुकाबले EM currencies (उभरती अर्थव्यवस्थाओं की मुद्राएँ) कमजोर हो रही हैं।
अमेरिकी बॉन्ड यील्ड लगातार आकर्षक बनी हुई है।
डॉलर की बढ़ती मांग से रुपया स्वाभाविक रूप से कमजोर होता है।
3. आयातकों की लगातार डॉलर खरीदारी
तेल कीमतों में उतार-चढ़ाव और अंतरराष्ट्रीय व्यापारिक भुगतान के चलते भारतीय आयातकों को भारी मात्रा में डॉलर खरीदने पड़ रहे हैं।
इससे डॉलर पर खरीदारी का दबाव और बढ़ गया है।
4. बैलेंस ऑफ पेमेंट (BoP) में दबाव
भारतीय रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले कुछ महीनों में
चालू खाता घाटा बढ़ा है
सेवा क्षेत्र से मिलने वाला सपोर्ट कम हुआ है
जब बोपी कमजोर होता है, तो विदेशी मुद्रा भंडार पर तनाव बढ़ता है—और रुपया गिरता है।
5. घरेलू बाज़ार की भावना कमजोर
मुद्रा की गिरावट ने निवेशकों की धारणा पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।
स्टॉक बाज़ार भी इस भावनात्मक गिरावट से अछूता नहीं रहा।
विशेषज्ञ क्या कहते हैं?
Anindya Banerjee (Kotak Securities)
उन्होंने कहा कि:
भारत की रियल GDP मजबूत है
लेकिन नॉमिनल GDP कई सालों के निचले स्तर पर
इसका कारण अत्यंत कम मुद्रास्फीति
कम महंगाई लंबे समय में रुपये के लिए अच्छी है, लेकिन अल्पकाल में यह रुपये की आकर्षकता और यील्ड डिफरेंशियल को कम कर देता है, जिससे विदेशी निवेशक वापस खिंच जाते हैं।
क्या दिसंबर के अंत तक रुपया 90 को छू सकता है?
इस सवाल का सीधा जवाब यह है कि:
हाँ, संभावना काफी अधिक है।
इसके प्रमुख कारण:
1. डॉलर इंडेक्स अब भी मजबूत
डॉलर इंडेक्स 103–105 के दायरे में मजबूत बना हुआ है।
2. FPI सेलिंग रुकने का संकेत नहीं
विदेशी निवेशकों की सेलिंग अभी भी जारी है।
3. RBI का सीमित हस्तक्षेप
RBI जरूरत पड़ने पर बाज़ार में स्थिरता लाता है,
लेकिन
लगातार हस्तक्षेप विदेशी मुद्रा भंडार को कम कर सकता है
इसलिए RBI आमतौर पर सिर्फ उतना ही हस्तक्षेप करता है, जितना आवश्यक हो
4. आयात भुगतान का पीक सीजन
दिसंबर–जनवरी में व्यापारिक भुगतान बढ़ जाते हैं, जिससे डॉलर की मांग बढ़ती है।
डॉलर–रुपया का संभावित रेंज (दिसंबर 2025)
| तारीख | संभावित रेंज |
|---|---|
| 1–10 दिसंबर | 89.50 – 90.10 |
| 10–20 दिसंबर | 89.80 – 90.50 |
| 20–31 दिसंबर | यदि FPI आउटफ्लो बढ़ा: 90.80 तक |
90 स्तर टूटना अब सिर्फ समय की बात लगता है।
इसका असर आम भारतीयों पर
1. विदेश यात्रा और पढ़ाई महंगी
डॉलर के महंगे होने से
टिकट
होटल
ट्यूशन फीस
सब बढ़ता है।
2. आयातित सामान महंगा
मोबाइल, लैपटॉप, हॉस्पिटल इक्विपमेंट, कार पार्ट्स आदि महंगे होंगे।
3. ईंधन पर असर
तेल कंपनियों की लागत बढ़ती है, जिससे भविष्य में पेट्रोल–डीज़ल की कीमतें फिर बढ़ सकती हैं।
4. शेयर मार्केट में उतार-चढ़ाव बढ़ेगा
रुपये की कमजोरी से
आईटी और फार्मा को फायदा
बैंकिंग, FMCG और आयात निर्भर सेक्टर को नुकसान

क्या RBI और सरकार इसे रोक पाएंगे?
RBI की रणनीति
जरूरी होने पर डॉलर बेचकर बाज़ार को स्थिर करेगा
लेकिन रुपये को किसी खास स्तर पर बांधे रखने की नीति RBI की नहीं
सरकार की रणनीति
ट्रेड बैलेंस सुधारा जाए
निर्यात को बढ़ावा दिया जाए
विदेश निवेश आकर्षित किया जाए
लेकिन ये उपाय तुरंत असर नहीं दिखाते।
निष्कर्ष: 90 रुपये प्रति डॉलर—अब लगभग तय?
भारतीय रुपया अब लगातार दबाव में है और 90 का स्तर अब मनोवैज्ञानिक नहीं बल्कि व्यावहारिक वास्तविकता बन चुका है।
जब तक
FPI आउटफ्लो कम नहीं होता
डॉलर इंडेक्स नरम नहीं पड़ता
इंडिया–यूएस ट्रेड डील आगे नहीं बढ़ती
तब तक रुपये में मजबूत रिकवरी देखना मुश्किल है।
संभावना यही है कि दिसंबर खत्म होने से पहले रुपया 90 के स्तर को छू सकता है, और उससे थोड़ा ऊपर भी जा सकता है।
